आशीष बड़ों का पाकर
किया शुरू जीवन-सफर।
जान नहीं, पहचान नहीं,
पहले कभी हुई कोई बात नहीं।
छोड़ कर घर-बार अपना,
लेकर आँखों में अनजान सपना
एक पराए घर को अपनाया
बदले में अथाह प्यार भी पाया।
प्रीत की आँच सुलग पड़ी
रिश्तों की खीर पकती रही,
धीमी आँच पर गाढ़ी होती रही।
चौंतीस वर्षों तक खीर की मिठास
पकवान की खुशबू बिखेरती रही।
धैर्य और विश्वास के जायके की
ताजगी आज भी बरकरार है।
ईश्वर की कृपा यूँ ही बरसती रहे!
गीता चौबे 'गूँज '
❤️❤️
दि ग्राम टुडे प्रकाशन समूह परिवार की ओर से
चौबे दम्पत्ति को हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत बहुत बधाई
शिवेश्वर दत्त पाण्डेय
समूह सम्पादक