कवियित्री स्मिता पांडेय की रचनाएं

  


कविवर नीरज

काव्य जगत के दिव्य पुष्प हो,

इस उपवन की शोभा हो,

तुमसे सुरभित काव्य प्रांगण,

तुम साहित्य पुरोधा हो।

यथार्थ और जीवन को तुमने,

एक साथ है वहन किया,

जो कुछ तुमने देखा समझा,

काव्य रूप है उसे दिया,

अंतर्मन थी गहन वेदना ,

कलम उसे बाहर लाई,

प्रेम गीत जब लिख डाले तो,

प्रेम बेलि थी मुस्काई,

आंसू से उपजी जब पीड़ा,

नीरज का पद प्राप्त हुआ,

फूल अगर कोई मुरझाया,

तो नीरज को संताप हुआ,

काव्य रंगोली सजा के तुमको,

आज नमन मैं करती हूं,

हर युग में तुम आओ फिर से,

पुष्प समर्पित करती हूं।

सावन

सावन की पहली बारिश ने ,मन इतना हर्षाया,

तपती धरती पर मेघों ने, मिलकर शोर मचाया ।


दग्ध धरा की तपन ने सबको ,व्याकुल था कर डाला, 

झुलस गए सब पल्लव कोमल,सूर्य निकट जब आया,

पवन का झोंका लू में बदला, प्रचंड रूप था छाया,

तब बादल ने झूम झूम कर ,मंगल गान सुनाया ।


अग्नि सूर्य की शांत हुई जब ,वर्षा की ऋतु आई,

घटा बादलों की छाई और ,नदियां भी इठलाईं ,

सागर से मिलने निकली तो, रूप निखर कर आया,

मन में लेकर नई उमंग ,प्रेम का दर खटकाया ।


प्रलय मचाते में मेघों ने, घनघोर गर्जना की है,

इंतजार अब हुआ है पूरा, मन को तृप्ति मिली है,

टप टप गिरती बूंदों ने है, यह संदेश सुनाया,

दुखद पलों के बाद सुखद यह, मौसम देखो आया ।


 देश


ये है मेरी धरती, ये मेरा आसमान

शस्य श्यामला आँगन, इसकी है पहचान


पर्वत ने दृढ़ता का ,सबको पाठ पढ़ाया

नदियों ने बाधाओं,से लड़ना सिखलाया

तरुवर की छाया में,पंथी ले विश्राम

नित प्रति बढ़ता जाए,देश के प्रति सम्मान |


भिन्न धर्म के लोगों ,को इसने अपनाया,

एकसूत्र में बाँधा ,सबको गले लगाया

आगन्तुक को हमने,समझा है मेहमान,

देश की खातिर दे दी,हँसते हँसते जान |


अन्न हमें है देता,कृषक जिसे हम कहते

उसके बिन परिवारों,में चूल्हे न जलते ,

वह भी है भारत की,एक अनोखी शान,

उसको भी हम समझें,समदर्शी भगवान |


लक्ष्य 


लक्ष्य अभी भी दूर है, पथ में है व्यवधान,

ईश्वर लेता जा रहा है ,क्रम से इम्तिहान।


रुदन राग न बन सके तो बिल्कुल न घबराएं,

 रोए बिना न पड़ सके, शिशु के तन में प्राण ।


तपन आग की जो सहे, वही निखरता जाए

कठिन समय में होती है, मानव की पहचान ।


देव दनुज हैं सामने, हम सबको भरमाएं,

अमृत लेकर भाग रहे हैं, धन्वंतरि भगवान ।


अतिशय अमृत भी सदा , विष ही बनता जाए,

 प्रकृति विनाशक बन गई, कैसे हो कल्याण?


पग में धरती नाप ली, दूरी घटती जाए ,

मानव बौना हो गया ,देख ज्ञान विज्ञान ।

स्मिता पांडेय

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