इंदु मिश्रा'किरण
मुझको कभी भी उनसे मुहब्बत न हो सकी,
जिनकी हमारी जैसी ही फ़ितरत न हो सकी।
जाने वो कैसे खुश हैं बसाकर नया जहां,
मुझसे अलग ये मेरी मुहब्बत न हो सकी।
जिनके लिए किए हैं दुआएँ यूँ रात दिन,
उनको मेरे ही वास्ते मुहलत न हो सकी।
नफ़रत दिलों में भरके मज़ा ले रहे हैं वो,
मुझसे कभी भी ऐसी तो हरकत न हो सकी।
रचते हैं रोज़ साज़िशें मेरे खिलाफ़ जो,
उनसे भी मुझको कोई शिक़ायत न हो सकी।
तैनात थे जो सबकी हिफाज़त के वास्ते,
उनसे तो बेटियों की हिफाज़त न हो सकी।
आँखों में आँसुओं को छुपा लो भी अब 'किरण'
बढ़कर ख़ुदा से कोई अदालत न हो सकी।
इंदु मिश्रा'किरण'
नई दिल्ली