मौत का मंजर

वीरेंद्र सागर 

मौत के मंजर कि मैं किताब लिखता हूं,

लोगों के बिखरते हुए सपनों का मैं हिसाब लिखता हूं ||

मछली की तरह तड़प रहे हैं जो,


उन लोगों के मन का 

मैं भाव लिखता हूं ||

जीवन के लिए जरूरी है जो,

उन सांसो का मैं अभाव लिखता हूं||

रोते बिलखते रह गए जो मां बाप के लिए,

उन बच्चों के तन्हा मैं ख्वाब लिखता हूं||

लिखता हूं उनके ख्वाब भी जिनके बेटे बेटी चले गए,

यह कविता उन मां-बाप की  मालिक मैं तेरे नाम लिखता हूं ||

खत्म कर मौत का खेल अब मेरे मालिक,

यह प्रार्थना तुझको मैं सुबह शाम लिखता हूं||

दुख के भाव से भर गया है सागर,

सागर के हृदय का मैं तुझको पैगाम लिखता हूं|| 


वीरेंद्र सागर 

शिवपुरी मध्य प्रदेश

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