ईश्वर का प्रतिरूप माँ

पूनम शर्मा स्नेहिल

मांँ शब्द अपने आप में है मानो संपूर्ण हो इसे किसी की आवश्यकता नहीं जिस से जुड़े उसकी अपूर्णता को भी पूर्ण करने वाला शब्द मांँ । एक अलग ही अद्भुत से शक्ति है इस शब्द में दूर हो या पास हमेशा साथ रहती है कभी दुआ बनकर तो कभी दवा बन कर।

कभी-कभी बहुत मीठी तो कभी बहुत कड़वी हो जाती है मांँ। खुद बन बुरा आप को अच्छा बनाना चाहती है मांँ। हर थकान हर चिंता दूर हो जाती है उस पल जिस पल हौले से सिर पर हाथ सहलाती है मांँ ।

कहते हैं जो चीज हमारे पास होती है हमें उसकी कदर नहीं होती उन्हीं चीजों में से एक बन जाती है मांँ। कुछ बोलने पर ऐसा लगता है मानो हर समय प्रवचन सुनाती है। पर हर डांट हर फटकार में कोई नई सीख दे जाती है मांँ।

नहीं यकीन तो एक बार जाकर उनसे पूछो, जिनके जीवन में नहीं होती है मांँ।


हममें से किसी ने भी ईश्वर को नहीं देखा है, पर उसकी शक्ति का आभास अवश्य किया है ।ईश्वर हमें प्रत्यक्ष आंँखों से दिखाई नहीं देते पर हम सभी के भीतर हमेशा मौजूद रहते हैं । इस बात का हम सभी को पूर्ण विश्वास होता है ।ईश्वर एक है वह हर जगह अपने आप को नहीं रख सके यह भी आसान नहीं था , शायद इसी लिए ईश्वर ने मांँ बनाई ।


मां वो जो हर घर में विराजमान रहती हैं । मांँ वो जो बिन कहे सब कुछ समझती है । मांँ वो जो कठिनाई में हमारी हिम्मत बनती हैं । मांँ वो जो हमें उंगली पकड़कर चलना सिखाती हैं। मांँ वो जो किसी भी समस्या में ढाल बनकर हमारे सामने खड़ी हो जाती हैं। मांँ वो जो हमारे मुस्काने पर मुस्काती है , और हमारे दुखी होने पर दुखी होती है। मांँ वो जो हमारी नींद की लिए अपनी ना जाने कितनी नींदे कुर्बान कर देती है । माँ वो जो खुद भले आधा पेट खाए पर  अपने बच्चों की हर खुशी पूरी करने की कोशिश करती है। मांँ वो जो सही और गलत के बीच के फर्क को समझाती है । मांँ वो जो बच्चों की नजर में खुद गलत बन जाए पर समाज के नजर में बच्चों को कभी गलत साबित होने देना नहीं चाहती। मांँ वो जो अपनी सारी खुशियांँ बच्चों पर न्योछावर कर देती है । वह जो बच्चों को संस्कृति और सभ्यता का पाठ पढ़ाती है ।मांँ वो जो हर दुआ में अपने लिए नहीं बच्चों के लिए ही प्रार्थना करती है । समझ नहीं आता मांँ के बारे में क्या क्या लिखूंँ।


शब्दों में मांँ का वर्णन करना *सूरज को दीपक दिखाने के समान प्रतीत होता है* मांँ चाहे किसी भी वर्ग की हो किसी भी परिस्थिति में हो पर वह उस परिस्थिति में भी अपने बच्चे को बेहतर से बेहतर देने की कोशिश करती है । यह बात सिर्फ हम इंसानों पर ही लागू नहीं होती । सृष्टि ने मातृत्व का आशीर्वाद जिसे भी प्रदान किया है उस सब के अंदर ईश्वर ने ऐसी शक्ति प्रदान की है , कि वह अपने बच्चे की सुरक्षा और भविष्य के लिए किसी से भी उलझ जाती है । कई प्रताड़ना बर्दाश्त करने के बाद भी जब मांँ अपने बच्चे को प्रताड़ित होते हुए देखती है तो वह भी शेरनी बन जाती है । कुछ ऐसी होती हैं मायें।


*मांँ तेरे लिए क्या शब्द कहूंँ हर शब्द यहांँ पर धूल लगे*।

*तेरे चरणों की धूल भी म‌इया, मुझे स्वर्ग का फूल लगे*।।


मांँ जो हर तकलीफ को सेह कर ,बच्चे के जन्म के समय बच्चे का चेहरा देख कर मुस्कुरा उठती है । उसकी आंँसुओं से भीगी आंँखों में भी उस समय वह चमक दिखाई देती है जो शायद उसने इससे पहले खुद भी कभी महसूस नहीं की थी। मानों मांँ खुद का ही नया जन्म देख रही हो एक नन्हे से बच्चे को गोद में लेकर मांँ मानो पूरी दुनिया को भूल जाती है , फिर क्या उसके बाद उस मांँ की दुनिया सिर्फ उस बच्चे तक ही रहकर सीमित हो जाती है । उस बच्चे के साथ ही हंँसना ,बोलना ,सोना ,उठना ,बातें करना, समय व्यतीत करना ,एक - एक चीज है। उसे सिखाना ,उसे सजाना ,उसे सवारना ,उसे पढ़ाना, मांँ की जिंदगी ही मानो यही रह जाती है। और वो इसमें बहुत खुश भी रहती है उसे इन चीजों से कभी कोई शिकायत भी नहीं होती।

बच्चे भी इस समय मांँ बाप के आसपास ही रहना चाहते हैं उनकी भी दुनिया इस समय मांँ बाप ही होते हैं परंतु जैसे-जैसे समय व्यतीत होता है सब कुछ बदलता चला जाता है। वही बच्चे जो मांँ बाप के बिना रह नहीं पाते थे। अब उन्हें अकेला समय चाहिए होता है । उनकी हर चीज धीरे-धीरे पर्सनल बन जाती है ।बिना यह सोचे समझे कि शायद यही पर्सनल चीजें उन्हें कभी किसी मुसीबत में भी डाल सकती हैं ।उन्हें लगता है कि वह मांँ-बाप से इन चीजों को छुपा कर आसानी से अपना जीवन व्यतीत कर सकते हैं, परंतु यह समझना उनके लिए मुश्किल होता है कि जिस मांँ ने गर्भ में 9 महीने पालकर आपको जन्म दिया ,वह बिना आपके बोले आपकी हर बात को समझने की शक्ति रखती है । यह शक्ति ईश्वर ने प्रदान की है उसे।

धीरे-धीरे बच्चे मांँ से अलग होते जाते हैं ।एक समय तो ऐसा भी आता है जब मांँ-बाप का साथ रहना बच्चों को खटकता है। वह दूरी बनाना चाहते हैं , परंतु जिस समय ऐसा वक्त उनकी जिंदगी में आता है । तब उन्हें इस बात का एहसास होता है कि उनसे क्या गलती हो गई ।

काफीअजीब मिट्टी की बनी होती है माँ इस सब के बाद भी वह सब कुछ भूल कर अपनी बच्चों के लिए दुआएंँ करती है।


शायद ही कोई ऐसी मांँ होगी जिसे बच्चे की खुशी से खुशी नहीं होती होगी। धरती पर ईश्वर का रूप बनकर सारी जिम्मेदारियों को निभाती है मांँ। बिना किसी शिक्षण के सबसे ऊंची परवरिश दे जाती है माँ। सोए हमारे भीतर हर प्रतिभा को जगाती है मांँ। भटके जो राह तो अक्सर डांँट जाती है माँ ।भवसागर को पार करना जीवन में सुख जाती है ।मांँ चुनौतियों के आगे नतमस्तक होना नहीं बस जाती है। मांँ खुद पर यकीन रखना यह समझ आती है ।मांँ तुम से बेहतर कोई नहीं यह बस कह जाती है। मांँ तुम से बेहतर कोई नहीं यह बस कह जाती है मां।


दर्द में रहकर भी मुस्कुराती है मांँ,

अपने हर गम को हमसे छुपाती है मांँ।

हर खुशी हम पर लूट आती है मांँ,

बिन बोले सब कुछ समझ जाती है माँ।।


पूनम शर्मा स्नेहिल


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