अंधा पीसे कुत्ता खाए

 लघु कथा

 पूनम शर्मा स्नेहिल

सुशीला और रमा दोनों बहने थी । उम्र में बस 1 साल का अंतर दोनों के बीच । सुशीला जहांँ एकदम सीधी-सादी और सामान्य सी लड़की थी । वही रमा बहुत ही तेज तरार और चालाक। हालांकि दोनों बहने ही थीं फिर भी अक्सर करके जब कोई कार्य करना होता तो रमा कोई ना कोई बहाना बनाकर बच जाति और सुशीला को ही वह कार्य करना पड़ता । यह सिलसिला यूंँ ही चलता रहा । सुशीला ने कभी कुछ इसलिए नहीं कहा क्योंकि वह सोचती थी कि यह मेरी छोटी बहन है । इसके लिए मैं इतना तो कर ही सकती हूंँ। पर रमा ऐसा करके अपने आप को बहुत ही स्मार्ट समझती थी। मांँ इन बातों से भलीभांति परिचित थी ।1 दिन घर में कुछ मेहमान आए सुशीला सुबह से उनके आवो भगत की तैयारी में जुटी हुई थी ।घर की साफ सफाई से लेकर भोजन विभिन्न प्रकार के भोजन बनाने तक की जिम्मेदारी सुशीला ने अकेले ही संभाली थी। जब मेहमान घर में आए तो सभी उनके साथ बैठे । सुशीला नाश्ता निकालने जा रही थी, तभी रमा ने सुशीला तुम रहने दो। मैं ले आती हूंँ यह देखकर सुशीला चुपचाप वहांँ बैठ गई। पर रमा को जाते देख पिताजी ने तुरंत रमा से कहा , रुको रमा । *अंधा पीसे कुत्ता खाए* ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है रमा । 

सुशीला तुम जाओ जो भी कुछ तैयारी की है वह लेकर आओ । सभी इंतजार कर रहे हैं। सुशीला पिता की बात सुन उठ खड़ी हुई , और रमा को साइड करते हुए रसोई की तरफ नाश्ता लाने के लिए चली गई।


सच में सीधे इंसानों का गुजर बसर बहुत मुश्किल हो जाता है। तेज तरार लोग अक्सर उनका फायदा उठाते हैं।।

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