विनोद कुमार पाण्डेय
करें बचपन को याद,
करती थी हर चीज विस्मित,
मन- मयूर नाचने लगता था,
सुन कर पक्षियों के गीत।
रंग-बिरंगी तितलियां
फूलों पर मंडराती,
छोटी बहना दौड़ कर,
उन्हें पकड़ने आती।
हरे भरे पेड़ों का गांव,
रिमझिम वर्षा में
बच्चों का दौड़ना नंगे पांव,
बहते पानी में रखना कागज का नाव।
घने बादलों के पीछे से
आहिस्ता सूरज आता
इंद्रधनुष फैला कर
हम बच्चों को लुभाता।
रात के होते थे अलग नजारे,
सम्मोहक लगते झिलमिलाते तारे।
प्रकृति के हर अंग से थी संवेदना,
पर दु:ख से थी बच्चों को वेदना।
कभी खत्म नहीं होता
प्रकृति का यह खेल,
हर पल प्रकृति दिखाती करतब,
हम देख नहीं पाते,
उम्र बढ़ी, वयस्क हो गए अब।
विनोद कुमार पाण्डेय
शिक्षक
(रा०हाई स्कूल लिब्बरहेड़ी, हरिद्वार)-