कितनी ..हसीन है तुम्हारे गालों की लाली।
जी चाहता है ........तुम यूं हीं.शर्माती रहो।
पड़ जाते हैं गालों में .........प्यारे प्यारे गड्ढे।
जानेमन तुम.......... यूं हीं मुस्कुराती रहो ।
नजरों ही .......... .नजरों में करती हो बातें
यूं ही नजरें तुम............मिलाती... ......रहो।
कुकने ...........लगती है रंध्र रंध्र... कोकिल।
ऐसे ही ..........तुम .....बतियाती .........रहो।
कितनी हसीन है ........... ...ये रेशमी जुल्फें।
तुम ..........यूं ही इन्हें....... लहराती रहो ।
झांकता है .........अंग अंग ..........से यौवन।
तुम .........यूं हीं ......बिजलियाँ गिराती रहो।
हर तरफ............ उड़ने लगती है मधुर गंध।
अधरों ..........से जाम छलकाती....... रहो।
बजने लगती . .. .है ...........चंदनी घंटियां ।
ऐसी ही ....तुम ............खिलखिलाती रहो।
कितनी हसीन है ये.......... मोरनी सी चाल।
नागिन सी..... यूं हीं बल खाती ........रहो ।
तपे हुए....... कुंदन सा ........तपता सौंदर्य ।
यौवन नव पुष्प.......... से सजाती .....रहो ।
सज-धज ...........नवीन कर सोलह सिंगार ।
रूप की.......... मदिरा लुटाती ........ रहो ।
अंग अंग रंगोली........ से ........सजाकर ।
नित ... . .. यौवन से मुझे... लुभाती रहो।
रचनाकारःः स्वर्गीय प्रेमशंकर पाण्डेय
.... गोरखपुर
प्रस्तुतकर्ता स्नेहलता पाण्डेय