सिसकी

नीरज कुमार सिंह

हर रात चंपा के खिड़की से दर्द भरी सिसकी सुनाई देती थी।

आखिरकार एक रात सुहानी पड़ोसी चंपा के घर, रात में ही पहुंचकर "सुहानी " ने चंपा से पूछ ही लिया।" क्या बात है ,...चंपा तू क्यों सिसकी भर रही है ?

चंपा बेचारी हर बार की तरह ही बनावटी मुस्कान चेहरे पर सजाकर बोली "नही तो कुछ ऐसा तो कुछ नही है, मैं कहां रो रही थी?" 

तभी सुहानी की तेज निगाहें चंपा के आंखों और गाल पर निशान देख लिए , जो शायद किसी के जोड़ से पीटने से ही पड़े हुवे थे ।सुहानी गौर से देखी तो चंपा के घर के बालकनी में शराब की बोतल भी बिखरी पड़ी थी ।सुहानी अब सबकुछ बिना बताए समझ गई ।फिर सुहानी चंपा से बोली" तू क्यों घबराती है?मैं हूं ना तेरे पड़ोस में ही हूं ना ,हम सभी सखिया तेरे साथ हैं, देख कबतक डरेगी अब जब भी तेरा पति तुझपर हाथ उठाए , तू भी जमकर धुनाई कर दे, तुभी कमजोर मत बन पगली पति समझी न?"चंपा भी हामी भर दी ।और वास्तव में उस रात के बाद से किसी रात में कभी भी चंपा के घर से कोई सिसकी नही सुनाई दी ।ये सब सुहानी प्रोत्साहन का असर था ।


स्वरचित 

नीरज कुमार सिंह

देवरिया यू पी

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