कोइ धार प्रवाहित
रुक ना जाये
उठने दो इन
वेगों को
कोइ धार प्रवाहित
रुक ना जाये
बहने दो इन
धाराओं को
कोइ धरा असिंन्चित
रह ना जाए
उठने दो अन्तस
के बादल
कोइ कलम
प्रष्ठ पर रुक ना जाये
गिरने दो उस स्वाँति
बूँद को
कोई चातक प्यासा
रह ना जाए
उठने दो उद्गार प्रणय के
कोई प्रणय अधूरा
रह ना जाए
कोई धार प्रवाहित
रुक ना जाये
(शरद कुमार पाठक)
डिस्टिक -----(हरदोई)