श्रीकांत यादव
पूछा जो उनसे कि
इस बेकरारी में वैसे
जाना है किस तरफ़
फांका मस्ती के दिन हैं
न जाना उस तरफ
फिर मुडकर न देखा
मेरे किस्मत का लेखा
बस कुछ मुस्कुराए और चल दिए |
कहा जो मैनें उनसे कि
मैं भी एक मुसाफ़िर
बस तुम्हीं संग है जाना
मेरी राह ए मंजिल
नहीं तुमसे जुदा है
अपना एक ही खुदा है
बस हंस कर न देखा
बस मेरी बातों से जैसे दहल गए |
मैनें उनसे कहा कि
क्या तुम आकाशी विजली
तुम बादलों के दिलों में
क्यों हलचल मचाते
बिजली दिलों पर क्योंकर गिराते
बस सकपका कर न देखा
मेरे किस्मत की रेखा
बस सिर झुकाए और निकल गए |
उनसे मैनें कहा कि
क्यों अपनों को अपने डराते
जब तब कभीं क्यों
अक्सर अपने रुलाते
मन में लगी आग क्यों
तुम लगाते बुझाते
बस हडबडा कर न देखा
किए कुछ लेखा-जोखा
बस बेताबी मे उनके तेवर बदल गए |
मैनें हंसकर जो पूछा
तुममें हिम्मत नहीं है
सवालों से क्यों मेरे
इतने तिलमिला रहे हो
बादल मे बिजली को
बिजली में बादल को
तुम डर कर छुपा रहे हो
बस नजरें झुकाकर न देखा
मुझे बस करके अनदेखा
मेरी बातों से जैसे मचल गए |
श्रीकांत यादव
(प्रवक्ता हिंदी)