सोच

 

कमलेश मुद्ग्ल

आशु अभी ऑफिस से घर पहुँच कर ताला खोल ही रही थी कि उसकी सखी प्रिया का फोन आ गया। उसने नाम देखा फिर सोचा लंबी बात चलेगी। चाय पीकर ही बात करूँगी। उसने जल्दी जल्दी पहले सब्जी का थैला रखा ,खिड़कियां खोली और रसोई में चाय के पानी के साथ साथ, कुकर में दाल भी भिगो कर रख दी। मन में यही उत्सुकता थी , प्रिया ने फोन किस बात को बताने के लिए किया? आराम से चाय पीने के बाद उसने आटा भी गूंध दिया। अब वह आराम से बात कर सकती है अपनी सखी से। उसने फोन-- हाथ में लिया नम्बर मिलाया और हैलो कहा। प्रिया ने हाल चाल पूछा फिर बोली, अरे! तुम्हें पता है एक बात? कौन सी? उसने भी हैरान होते हुए पूछा। अरे? वह अपनी गली में जो अमिता है न! हाँ हाँ! उसने हामी भरते हुए कहा , क्या हुआ? बता! ज्यादा मत उलझा मुझे, उसने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा। अमिता की शादी को सात साल हो गए, पर माँ नहीं बन पाई। कोई बात नहीं, बन जायेगी! इसमें फोन करके बताने की क्या बात? यही तो! दोस्त! बताना था कि उसने कल ही एक लड़की गोद ले ली है। अच्छी बात है। उसने कहा, अरे! जब गोद ही लेना था, तो लड़का लेती लड़का! लेकिन सबके सामने आदर्श वादी बनने के लिए लड़की गोद ले ली। प्रिया एक ही साँस में, सब कह गई। उसके पास कोई जवाब नहीं था। क्या कहे?? अच्छा अब खाना बनाना है कह कर उसने फोन रख दिया। 

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