राजनीति बाज
-----------------
नेता मत कहो इसे,
यह है घाघ राजनीति बाज।
नेतृत्व कर सकने की
नहीं है इसकी औकात ।
इसे राजनीति का ज्ञान नहीं,
संवेदना का भान नहीं ,
कालुष्य भरा है इसका मन
साम, दाम, दंड ,भेद का
है यह खिलाड़ी शातिर।
देश से इसका न कोई नाता,
केवल ढोंग रचाना आता।
कथनी और करनी में इसकी
सदा रहे छत्तीस का नाता।
बरपाए यह नित नई आफत।
छल प्रवंचना में माहिर।
कुर्सी धर्म ईमान है इसका ,
गद्दी ही भगवान् है इसका।
थाली के बैंगन सा लुढ़के
गिरगिट को आदर्श बनाए।
बैठा नौ सौ चूहे खाए।
लील गया सब सीमेंट पाथर।
हर विपदा में खाए मुनाफ़ा,
लाशों का यह है सौदागर !
बैठा शर्मोहया बेचकर।
कान पर इसकी जूं न रेंगे,
बैठा गूंगा -बहरा बनकर।
काश !मिल पाता ऐसा नेता
देशराग हो जिसकी धड़कन।
लोकमंगल हित वारे तनमन।
नीति की गरिमा जो जाने।
युग चेता विवेकवान हो।
उतरे रामराज्य तब भू पर।
राजनीति बाज
-----------------
नेता मत कहो इसे,
यह है घाघ राजनीति बाज।
नेतृत्व कर सकने की
नहीं है इसकी औकात ।
इसे राजनीति का ज्ञान नहीं,
संवेदना का भान नहीं ,
कालुष्य भरा है इसका मन
साम, दाम, दंड ,भेद का
है यह खिलाड़ी शातिर।
देश से इसका न कोई नाता,
केवल ढोंग रचाना आता।
कथनी और करनी में इसकी
सदा रहे छत्तीस का नाता।
बरपाए यह नित नई आफत।
छल प्रवंचना में माहिर।
कुर्सी धर्म ईमान है इसका ,
गद्दी ही भगवान् है इसका।
थाली के बैंगन सा लुढ़के
गिरगिट को आदर्श बनाए।
बैठा नौ सौ चूहे खाए।
लील गया सब सीमेंट पाथर।
हर विपदा में खाए मुनाफ़ा,
लाशों का यह है सौदागर !
बैठा शर्मोहया बेचकर।
कान पर इसकी जूं न रेंगे,
बैठा गूंगा -बहरा बनकर।
काश !मिल पाता ऐसा नेता
देशराग हो जिसकी धड़कन।
लोकमंगल हित वारे तनमन।
नीति की गरिमा जो जाने।
युग चेता विवेकवान हो।
उतरे रामराज्य तब भू पर।
वीणा गुप्त
नई दिल्ली