ग़ज़ल

 


डॕा शाहिदा

हौसला बाक़ी नहीं दिल ग़म से चूर है,

हम तो लाचार हैं पर तू नहीं मजबूर है |


छोटे छोटे दूध पीते बच्चों को देखो,

इनके सर से तो माँ का साया भी दूर है |


बूढ़े बाप के कांधे पे बेटे की लाश,

देखा नहीं जाता पर देखा ज़रूर है |


वो लाशें जिन्हें अपनो के कांधे न मिले,

तेरी रज़ा है तो हमें देखना मंज़ूर है |


कल आई थी घर,जो बन के दुल्हन,

आज विधवा हो गयी,क्या यही दस्तूर है |


हर तरफ़ मातम ही मातम है यहाँ,

जो तुम्हें मंज़ूर है, वो हमे मंज़ूर है |


मेरे मौला ये मंज़र तुम भी देखते होगे,

हर ख़ुशी हर ग़म हरआँसू में तेरा ज़हूर है |


उजड़े गुलशन को फुलवारी बना दो मालिक,

मेरे लहू की एक एक बूँद तेरी मशकूर है |




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