ये दिन भी गुजर जाएँगे

सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'

मत कर फिक्र इन्सां ये दिन भी गुजर जाएँगे।

पर सुनकर दास्ताँ बच्चे भी सिहर जाएँगे।



जिनके खुद अपने बिछड़ गये इस दावानल में,

इस भरी दुनिया में वे तन्हा किधर जाएँगे।


बस हवा की कमी ने अपनों का दम घोटा है ,

वो बिचारे झंझावातों में बिखर जाएँगे।


कहीं बच्चे न रहे कहीं माता पिता ना रहे,

यह ना पूछो कहाँ जा कर के बिफर जाएँगे।


अब बक्क्ष दे इस जहान को ऐ जुल्मी सितमगर ,

हम तो इन मुसीबतों में और निखर जाएँगे।


आज आँखों में लिए जो आँसू घूम रहे हैं।

यही दुआ है उनके दिन भी सँवर जाएँगे।


मुस्कानें से खिल उठेंगी सबके चेहरों पर,

अच्छे दिन दुनिया आ कर यहीं ठहर जाएँगे।


सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'

इन्दौर मध्यप्रदेश

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