सीमा मिश्रा
गंगा केवल नदी नहीं है,
है जीवन धारा देश की।
जिसके कल कल जलमें खेले,
संस्कृति भारत देश की।
उतरी जब से धरती पर,
एक एक को जीवन दिया।
अन्त समय में मुख में जाकर,
जीवन का उद्धार किया।
भागीरथ ने वसुधा पर लाकर,
पुरखों का उद्धार किया।
ऋषि मुनियों ने गंगा तट पर,
जीवन सारा पार किया।
वेद पुराणों की रचना की,
ग्रंथ विपुल महान लिखे।
राग रागीनियों लय छंद बनाए,
महाकाव्य के विधान लिखे।
भिन्न भिन्न बोली भाषाएं,
विकसित गंगा तट पर हुई।
देवसंस्कृति मां की गोद में,
विकसित वैभव सहित हुई।
मेल जोल संस्कृतियों का,
मेलों के रूप में दिखता है।
मंदाकिनी के पावन तट पर,
साहित्य समागम लगता है।
गंगा के दर्शन से मिटता,
घनघोर अंधेरा जीवन का।
गंगाजल से मार्ग है मिलता,
मानव के नवजीवन का।
सीमा मिश्रा
,वरिष्ठ गीतकार कवयित्री व शिक्षिका स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार,स०अ०, उ० प्रा० वि०-काजीखेड़ा,खजुहा, फतेहपुर,उत्तर प्रदेश