डॉ मधुबाला सिन्हा
याद उन्हें कर करके हमने
कितने घरौंदे बना डाले हैं
कुछ गिर जाते हैं रोज़ धड़क
कुछ लम्हों में गिरा डाले हैं
कहते हैं निकला चाँद कहीं
कहीं तारे भी टिमटिमाते हैं
ढल गयी चमक दूर सूरज की
अपने भी यूँ बिछड़ जाते हैं
दूर कहीं मन्दिर की घण्टी
कहीं से अज़ान भी आते हैं
लगी क़तारें कहीं जनाज़े
कहीं लपटें उठाए जाते हैं
कहीं बिखरा हुआ मज़मून
कहीं मज़लूम बनाए जाते हैं
मजबूरों की इस बस्ती में
कहीं चीख़ दबाए जाते हैं
दिल कहता कहीं दूर चलो
फ़िर टहला वापस लाता है
दबी हुई जो राख -चिंगारी
उससे मन घबड़ा जाता है.....
★★★★★
डॉ मधुबाला सिन्हा
मोतिहारी,चम्पारण