मातृ भूमि----
तेरे चरणों मे शीश झुकाते है
हे मातृ भूमि तुझे प्रणाम
तेरे मस्तक पर अपने रक्त
तिलक लगाएंगे।।
यदि शत्रु आंख दिखाए
उसके ही रक्त से अभिषेक
तेरा हम कर देंगे हम।
जननी ने जन्म दिया
छोड़ दिया तेरे आँचल में।
तू जननी जन्म भूमि है
तेरी मर्यादा की रक्षा में
तेरी हम संतान शीश चढ़ाएंगे।।
तेरे वर्तमान का तेरा हम है
अभिमान अतीत के अपमानों
से तुझे मुक्त कर आज तेरी
पीड़ा वेदना का हिसाब चुकाएँगे।।
तेरी मर्यादा में ना जाने
अतीत में तेरी संतानो ने
बलिदान दिया उनके बलिदान
उद्देश पथ को पथ अपना बनाएंगे।।
बर्बरता क्रूरता ने रौंदा था तुझको
आज काल की पुकार में उनको
सबक सिखाएंगे।।
संकुचित सोच के तुक्ष
मनुज ने ही तेरे टुकड़े कर
डाले शायद उनको पता नही
तेरी वेदना आज फिर वही
ताकते तुझे कर रही फिरसे
लज्जित लेकर धर्म निर्पेक्षता की
आड़ करते नंगा नाच ।।
आस्तीन में छुपे सांपो को
अस्तित्व पराक्रम पुरुषार्थ की
बिन पर उन्हें नचाएंगे।।
सर तेरा अब ना झुकने देंगे
मान तेरा ना मिटने देंगे
चाहे जो भी हो काल परिस्थिति
तेरी अक्षुण अक्षय मर्यादा को
फिर अब हम ना मिटने देंगे।।
वात्सल्य -----
माँ तेरी गोद दुनियां का
अभिमान तेरी उंगली जीवन
पथ प्रदर्शक महान।।
माँ वात्सल्य मेरा तेरी दुनिया
संसार युग की सारी खुशियां
भूल ही जाती मेरा वात्सल्य ही
दुनियां संसार ।।
लाख शरारत करती तेरी
संतान क्रोध नही करती
संतानों की हर छोटी
बड़ी शरारतों पे खुश होती
जैसे मिल गया हो तुमको
चाहत का संसार।।
नटखट बचपन की किलकारी
जाने क्या क्या जिद करती
कभी चाँद कि चाहत कभी
दुनियां की चाहत का बचपन
जिद्द रार।।
तेरे कहने पर पानी का अक्स
चांद तेरी ही मुस्कानों का राज तेरा
युग स्वर्ग भगवान।।
रात रात को जागती
तुझको सोने नही देती
औलाद फिर भी शिकवा
शिकायत नही दुनिआ में
तेरा नाज़।।
अपनी संतानों में दिखता नही
कोई अवगुण तेरी संतान तो गुणों की
खान कोई अगर शिकायत करता कोई
कर देती तू उसका मर्दन मान।।
माँ तू ममता की सागर मैं
तेरी ममता का भूखा
तेरी त्याग तपस्या का पल पल।।
माँ तू वात्सल्य का बैभव
तेरी दुनियां धन दौलत
तेरी संतान ।।
माँ तेरी शिक्षा दृष्टी और
दिग्दर्शक माँ परिवरिश तेरा मेरा
संस्कृति सांस्कार।।
माँ तू त्याग की मूरत
नही याथार्त तेरी करुणा
क्षमा का कोई नही जबाब।।
जननी तू लालन पालन करती
तू देव अविनि की सत्यार्थ साक्षात।।
माँ तेरे कारण आतिस्त्व मेरा
तेरे त्याग बलिदानों का जीवन आदर्श मेरा तेरी ही लहू से लहू मेरा तेरी ही शिक्षा संस्कार मेरा यह जीवन।।
तेरी साहस शक्ति मेरी ताकत ऊर्जा उत्साह आधार माँ मैं तो तेरी ही ममता आँचल वात्सल्य का दुलार तेरी संतान।।
मेरी हर हद हस्ती की निखार माँ
नौं माह कोख में रखा असह
वेदना का दुख सहा, लिया तूने आहार वही जो मुझे पसंद ,किया वही व्यवहार जो मुझे पसंद, जन्म दिया तूने युग से परिचय करवाया ।।
जन्म के बाद चलना सिखलाया तेरी ही ऊँगली पकड़कर चलना सिखा
तूने ही दुनियां का मर्म मर्यादा सिखलाया ।।
तूने ही जीवन संग्राम के
कुरुक्षेत्र में जीवन मूल्यों के
युद्व से लड़ना जितना सिखलाया।।
तू जननी माँ माता तू नही होती तो
युग सृष्टि में मुझे कौन बुलाता।।
तू प्रथम गुरु तू युग मे प्रथम
रिश्ता तूने युग आचरण के रिश्तों
से परिचित करवाया ।।
तूने ही नैतिक नैतिकता का
पाठ पढ़ाया तूने ही भाग्य काल
कर्म का ज्ञान कराया ।।
तूने ही भगवान के अनेको नाम
दिए परिचित करवाया माँ है जननी है धन्य धीर धैर्य तू अविनि है।।
स्वार्थी मैं तेरी संतान तूने मेरे लिये मेरी खातिर सारे त्याग बलिदानों को भी
स्वीकार किया ।।
अपने दुःख कष्टों के बदले तेरी कुछ भी ना चाहत नही मांगती कुछ
भी अपनी औलादों से सदा चाहती
उनका कल्याण ।।
पुत्र संतान कुपुत्र बेलगाम
सम्भव है माँ माता कुमाता
कभी नही चाहे बदले युग संसार
भाग्य काल भगवान।।
माँ कितनी स्वार्थी संतान
कुछ भी कर पाए तेरी खातिर
असंभव मुश्किल।।
संतानो को स्वयं
चाहिए जीवन के पल
पल प्रहर प्रातः संध्या दिन रात
तेरा आशीर्वाद माँ।।
माँ आज भी तेरा आशीर्वाद प्यार
ही मेरा संसार----
संदेश तूझे क्या मैं दे सकता
मेरे पास कुछ भी नही ऐसा।।
जो मेरा है, जो भी है मेरे पास
तूने ही दिया मेरा कुछ भी नही
मेरे पास।।
रखा जब कदम युग अविनि पर तेरे
आँचल की साया ममता दुलार कवच
विश्वास।।
भूखा नंगा रोता चिल्लाता
तूने अपना स्तनपान कराया
काया मेरी जीवन तेरा सत्कार।।
भय भूख से लड़ने की
शक्ति साहस भी तेरा
सोच समझ ज्ञान योग्यता
तेरे ही परिवरिश परमार्थ।।
कुछ भी देना चाहूं तो पास
नही कुछ भी जो मेरा है।।
तू जननी है ,माँ तू ही भरणि है
जो भी है मेरे पास तेरा ही प्यार परवरिस प्रयास।।
क्या जाने भगवान देखा ही नही
जिसको पत्थर में मिल जाता है।।
कोमल ममता दुलार वात्सल्य
भाव भावना जन्म जीवन दायनी
भाग्य भगवान तू प्रत्यक्ष याथार्त प्रमाण भाग्य भगवान माँ।।
मैं तूझसे जन्मा ,मेरे सद्कर्मो
का फल तेरा दूध जीवन अमृत।।
रात रात भर तुझे जगाता ना तू
क्रोधित होती ना होती तंग।।
चाहे कितनी भी आ जाए विघ्न बाधाएं
सदा तू आगे बढ़कर बन जाती दुर्गा काली कवच काल।।
कभी कभार तू भूखी भी रह जाती
पर मैं भूखा रहूँ पल भर सहन ना कर
पाती आ जाये झींक भी सारे वैद डॉक्टर बुलवाती।।
मिर्चे जलाकर नज़र उतरती
जब भी बाहर जाता जाने से
पहले लाख देती हिदायत
जब तक घर ना आ जाऊं
मेरी राह निहारती।।
हर पल मेरे चेहरे की आभा से
मेरे सुख दुख का करती लाख सवाल।।
छुपाना चाहूं फिर भी सत्य छिपा
ना पाऊं माँ की ममता के आगे
हर पल शीश झुकाऊं।।
नही चाहती माँ सर उसकी
संतान का झुके कहीं उसकी
सदा चाहत उसका लाल परिवार
समाज राष्ट्र का अहंकार बनेअभिमान।।
झुकना हो तो बेटे के कदमों में शत्रु
दुष्टों का अभिमान झुके माँ की मंशा
यही धरती आसमान झुके।।
खरोच भी मेरे वदन पर देख सहन
नही कर पाती देख लिया यदि लाखो
प्रश्न कर जाती लाख बहाने बनाऊं
सच्चाई छिप नही पाती।।
मेरे ख़िलाफ़ एक शब्द माँ सुन नही
पाती कोशिश करता यदि कोई तो
उसकी त्रुटियों से उसकी औकात बताती।।
यही कामना माँ मेरी तेरा
आशीर्वाद प्यार की छाया
मेरी काया की परछाई हो।।
तू ना बिछड़े कभी ना माँ
बेटे की कभी जुदाई हो
प्रत्यक्ष भले ना हो ना दिखती
पर पास सदा तू रहती ।।
तेरी ही सीखो आदर्शो पर
साँसों धड़कन की दुनियां मेरी
चलती ।।
लम्हा लम्हा जिंदगी
जिंदगी का सफर गम खुशी आंसू मुस्कान तन्हाई कारंवा नफरत मोहब्ब्त की दासता दरमियान।।
मन के कागज़ पर लम्हे कुछ लिख जाते ऐसा जिन्दगी जज्बात ज़मीं आसमान जैसा।।
नित्य निरंतर प्रभा प्रवाह का ठहराव चलती जिंदगी रिश्ते नाते प्यार मोहब्बत दुश्मनी दोस्ती।मन के कागज पर जिंदगी की याद इबारत।।
कुछ भूलता मिटाता कुछ साथ याद जख्मो की शक्ल कुछ जिंदगी के हसीन लम्हे हम सफर ।।
मन के कोरे कागज पर हुश्न इश्क मोहब्बत जज्बा जुनून सुरूर गुरुर ईमान गुनाह के अक्षर अल्फ़ाज़
दर्ज।।
इंसान की चाहत मन के कोरे कागज पर सोने के अक्षर अल्फ़ाज़ के खूबसूरत चमकते सोहरत की इबारत।।
मंजूर नही खुदा को इंसान अपनी मर्जी से दर्ज करे मन के कोरे कागज अपने जिंदगी लम्हो कदमो की तारीख इबारत।।
तमाम हद हैसियत की लाइने खिंच देता मन में चाहत नफरत दोस्ती दुश्मनी जज्बे के बीज फसल लहलहाते।।
इंसान की जिंदगी का सफर जंग के मैदान का लम्हा लम्हा मन के कोरे
कागज़ पर रंग बिरंगी बहुरंगी इबादत के इबारत।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गोरखपुर उत्तर प्रदेश