किरण मिश्रा 'स्वयंसिद्धा'
जग उठी है किरण नव सबेरा हुआ
नेत्र में रोशनी का नव बसेरा हुआ है ।।
नील नभ में पखेरू बने करधनी,
ले किरन तूलिका रवि चितेरा हुआ है।।
लो चमकने लगे स्वर्ण से हिमशिखर,
शिव जटाजूट गंगा का डेरा हुआ है ।।
आशीष दे रहे देव सारे हाथ रख,
मानसर में उजाला घनेरा हुआ है ।।
डाल सिंदूर ऊषा हुलस कर चली,
भानु प्रिय संग दिन प्रीति फेरा हुआ है ।।
आओ प्रभाती सुनाओ मीत मधुर कण्ठ से ,
इस धरा पर साँस का फिर बसेरा हुआ है ।।
अलसाई पलकें किरण त्याग दो घर चलो,
की फिर कान्हा की बंशी का टेरा हुआ है।।
वन्दना का समय है मन उजाला हुआ ।
प्राण से प्राण में प्राण वायु का डेरा हुआ है।।
किरण मिश्रा 'स्वयंसिद्धा'
नोएडा