महेन्द्र सिंह राज
समय बहुत विपरीत है, बुरा सभी का हाल।
सावधानी रखो सभी, चलो सभलकर चाल।
इक दूजे की मदद ही , हो मानव का कर्म।
कोरोना बन घूमता , आज मनुज का काल।।
छेड़छाड़ करिए नहीं, प्रकति संग तुम लोग।
आम मानव है पिस रहा,बहुत दुखद संयोग।
मानवता अब रो रही, बदला प्रकृति स्वरूप।
मानव दानव बन रहा,खोजे निशि दिन भोग।।
छेड़छाड़ अब प्रकृति से , होत नहीं बरदाश।
प्रकृति का शोषण नर अब,छोड़ देता काश।
तो शायद उस कोप से , बच पाये नर आम।
प्रकृति लील जाए न सब, मत करो परिहास।
पर्यावरण अमल रखो , शुद्ध रखो नद नीर।
वृक्षारोपण कर सभी , हरे प्रकृति तव पीर।
मानवता तो अमर है , नर भले नाशवान।
प्रभू प्रकृति की भुज गहो , उतरेगी तव भीर।।
विज्ञान व प्रकृति संतुलन,बहुत जरूरी आज।
जब ऐसा न किया गया , गिरती नर पर गाज।
विज्ञान एक दीप है , जगत करे आलोक।
हर जीव पर दया करो , सबसे सुन्दर काज।।
महेन्द्र सिंह राज
मैढी़ चन्दौली उ. प्र.