पूनम शर्मा स्नेहिल
शांत सौम्य सा मुखड़ा,
नमन तीखी कटार ।
मुखड़े की आभा से छलके ,
स्नेह आज अपार।
एक मुस्कान से देती है ,
सबके कर्ज उतार।
छलके नैनों से इसके,
ममता और दुलार ।
लाई देवों से ये मानो ,
सौंदर्य रूप उधार ।
पाने को ये रूप सलोना,
तरसे है संसार ।
बिना बोले नैनों से करती,
प्रेम का इजहार ।
कर इसका सृजन प्रभु ने,
किया सृष्टि पर उपकार ।
करती हर चुनौती को ये
दो पल में स्वीकार ।
बिन शृंगार लगे हैं ऐसे,
किया हो सोलह शृगार।
अधरों पर मुखरित होते ,
शब्द आज उपचार।
खुल जाए जो लब ये,
शब्द सुन जग का हो उधार।
देख के इसकी सूरत ,
दिल को आता है करार।
झलके रूप से इसके,
हर क्षण बस प्यार प्यार प्यार।।
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