आप में से शायद बहुत लोग अमर बेल के बारे में नहीं जानते होंगे इसलिए कविता पढ़ने से पहले मै आपको बताना चाहूंगी कि अमर बेल एक परजीवी लता होती है जो दूसरे पेड़ पौधे पर चढ कर बहुत तेजी से अपने आप को बढ़ाती है और उसी पौधे को नष्ट कर देती है ।। कीर्ति चौरसिया
नहीं होना चाहती मै अमर बेल,
चाहती तो कब की छा जाती
पेड़ पत्ते, पौधों की डालियों पर,
अगर चाहती तो जीवन की रफ्तार बढ़ा देती, लेकर औरों का सहारा ,
और फिर सारा रस उसका ही पी जाती। ,!!!!
होकर किसी के अधीन, बढ़ना नहीं मुझे मंजूर,
फैलाकर अपनी जड़ें, दुड़ना है अपनी जमीं,
होकर सुगंधित सुमन से,फल अपने दे पाऊं ,
मदमस्त हवा के झोंको से डालियां अपनी लह राऊ,
नहीं होना चाहती मै अमर बेल ।।
चाहती हूं वृक्ष बनूं,पंछियों को घर दूं,
राहगीर को छाया दूं, प्रकृति को वायु दूं,
मौन नि शब्द रहकर भी कर्तव्य अपना करूं,
अपनी कोमल कोपलों से वन्य जीव का उदर भरूं,
इसलिए नहीं होना चाहती मै अमर बेल ।।
स्वरचित, मौलिक, सर्वाधिकार सुरक्षित
कीर्ति चौरसिया
जबलपुर (मध्य प्रदेश)