लघुकथा
डा रजनी रंजनभगवान कौन है? माँ! बोलो ना! तुम सुबह पूजा कर फोटो को कहती हो कि भगवान हैं ।मेरी पुस्तक और काॅपियों को प्रणाम कर उन्हें भी देवी कह भगवती कहती हो पर आज तो तुम मुझे फिर से नया भगवान दिखा रही हो।
सचमुच! आखिर भगवान कौन हैं । आज तो तुमने पुलिस अंकल को भी भगवान कह दिया।
बेटे के मुख से इतने सारे प्रश्नों को सुनकर शांता असमंजस में पड़ गई ।वह अपने नन्हे से पुत्र के दिलो दिमाग में चल रही हलचल के आसान समाधान ढूँढने लगी।फिर उसने जवाब दिया- फोटो या पुस्तक को बोलते तो तुमने देखा नहीं पर ये हमें सही रास्ता दिखाते हैं जैसे पुलिस अंकल को देखा है न! कैसे इस महामारी से लोगों को बचाने के लिए दिन रात अपनी परवाह किए बिना सेवा कर रहे हैं ।जो मिल जाता है खाकर अपनी भूख मिटाने का प्रयास करते हैं ।लोगों की परवाह करना ही इनका सबसे बड़ा धर्म है।
इसलिए ये भी भगवान हैं ।
बालक माँ की बातों को सुनकर दौड़कर घर से एक फोटो फ्रेम लाया और बोला- माँ इनकी फोटो भी लगा दो मैं इनकी भी पूजा करूँगा ।
माँ ने फोटो लगाकर मंदिर में रखते हुए बेटे से कहा- इन्हें कहीं भी देखना तो सलामी देना न भूलना। सदा इनका सम्मान करना।
बेटा अब संतुष्ट हो उत्तर दिया- मैं भी बड़ा होकर भगवान बनूंगा और देश की सेवा करूंगा ।
स्वरचित