लिबास-!
तुम मेरे लिबास पर
मत जाना
शायद तुम मेरे इस लिबास
में छुपी निश्छलता को
समझ नहीं पाओगे
इस लिबास में छुपा
एक सामान्य जीवन
और इस समन्दर के उद्गार
को सायद तुम
समझ नहीं पाओगे
एक हीरे की परख
सिर्फ एक जौहरी को ही
हो सकती है
यहांँ तो लोग बिना समझे
बिना भांपे
परिहास का पर्याय
बना लेते है
तुम मेरे लिबास पर
मत जाना
मै किसी की भावनाओं में
या किसी साधना में
मग्न होकर लोगों को क्यूं दिखाऊं
मैं अपनी इस विद्वत्ता का साक्ष्य
लोगों के सानिध्य
बेवजह क्यूं दिखाऊं
तुम मेरे लिबास पर
मत जाना
कस्तूरी-!
खोज रहा था
वन कस्तूरी
विह्वल मृग वीराने में
सुरभित गंध महकती थी
उसके ही कलेवर में
सुरभित गंध
सनक पर चलता
पर मिले नहीं कस्तूरी वन
भाँप सका न खुद को
खुद में छुपी हुई कस्तूरी को
था आतुर इतना विह्वल
कस्तूरी मृग पाने को
इधर खोजता उधर खोजता
पर मिले नहीं कस्तूरी वन
खोज रहा था
वन कस्तूरी
विह्वल मृग वीराने में
शरद कुमार पाठक
डिस्टिक----( हरदोई)
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