एक नज़्म
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अजीब शख्स हो तुम
करब-अंगेज उजाले को भी
उम्मीद से लबरेज नही मानते
जायज नही मानते
आखिर तुम्हारी सोच
इतनी नकारात्मक क्यों है
इतनी बरबाद शुदा क्यों है
इतनी तबाह शुदा क्यों है
क्या तुम्हारा माजी
तुम्हारे नब्ज़ की धड़कन मे उतर
तुम्हे परेशान करता है
तुम्हारी तन्हाई मे दस्तक देता रह्ता है
तुम्हारे ज़ख्मों को कुरेदता रह्ता है
तुम्हारे अधूरेपन को चुनौती देता रह्ता है
तुम्हारी वीरानगी से टकराता रह्ता है
तुम्हारी उदासियों का हिस्सेदार नही बनता
तुम्हारी अकीदत का राजदार नही बनता
शायद तुम्हारे तल्खिये-एहसास को
महसूस करता है
तुम्हारी बिखरी बिखरी सी यादोँ को
चश्मे पैमाने से टपका आँसूं मानता है
फिर तो बड़ा सवाबी है
तुम्हारा माजी
उसे तीरगी की फिज़ा से दूर रखना
बूझते एहसासात से रुबरु मत कराना
सोच की नादान
कोशिशों के हवाले मत करना
वर्ना,शादाब हवाओं का झोंका
उसे अनगिनत दर्द दे देगा
जिसे वो शायद ही सम्भाल पायेगा
एक गुजारिश है तुमसे
उसे किसी फ़रिश्ते के मानिन्द
समझना
बहुत नेक है वो
संवार देगा तुम्हारा मुक़द्दर
कर देगा रौशन
ज़हन मे लिपटी सारी बेसवब
यादों को
(सवाबी-पूणयात्मा,शादाब-मादक,'अकीदत-निष्ठा,करब अंगेज-सुखदायक)
प्यार एक --रंग अनेक --
(रंग----एक )
सुकून और स्नेह के
हरसंभव तलाश की कोशिश
चाहत ,खुशहाल जिन्दगी की
जेहन में समेटे
संताप/यंत्रणा/तनाव
के कशमकश को झेलती
दिनचर्या से कोसों दूर
एक क्षणिक/काल्पनिक
सुखद एहसास,,,,,,,
(रंग ---दो)
अप्रतिम सौन्दर्य की चाहत
रूमानी जिन्दगी की हसरत
खुशनुमा भविष्य की ख्वाहिश
करार की सरगोशियों की सताइश
मुकद्दर के यकीं की आजमाइश ,,,,,,,,,,,
(रंग-तीन)
संग दिल दुनिया में
थोड़ी सी ख़ुशी
लफ्ज़ दर लफ्ज़
उम्मीद का एहसास
यदा कदा
खामोश लहजे में
बेरुखी की गुफ्तगू
मंजिल बिलकुल करीब
पर सराबों की मानिंद
(सराबों-मृगतृष्णा)
(रंग -चार )
बेफिक्र सी फितरत
दर्द की बात बेमानी
गरिमा/करुणा/अनुभूति
सब लगती अनजानी
साथ हो के भी बेगानापन
निहित स्वार्थ सर्वोपरि
एक विकृत विरूप
शिथिल मुस्कान ,,,,,,,,,
राजेश कुमार सिन्हा
मुम्बई