मनु प्रताप सिंह
राही सजायेंगे पथगमन को,विजित-विभूषित अलंकृत से।
समक्ष चमकेगी मरीचि पुँज, श्रम व्यवस्थित अंगीकृत से।
बालपन वृत्ति सें, हो जाये निष्क्रिय भंग।
निराश पथिक में भरे,नवजीवन की उमंग।
वृद्धजनों में पुनः जागे,तरुण जैसी तरंग।
जय-उल्लास से हो उठे,झूम अंग प्रत्यंग।
मन में अग्रिम की,करो संचित अभिलाषा।
योग्यता के परिणाम में,फूट पड़े आकांक्षा।
परिश्रम स्वेद से पनपे ,सफलता की प्रत्याशा।
जीवन समरविजय की,तुम बनो परिभाषा।
तुच्छ सफलता को भी तुम,करो घोषित स्वीकृत से।
साधक इच्छित प्राप्ति में,गूँजेगे जयगान झंकृत से।
मनु प्रताप सिंह
चींचडौली (काव्यमित्र), खेतड़ी