"दोहा"



महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी

कोरोना किरदार का, कैसा होगा चित्र।

मानव मानव से डरा, रहा पुराना मित्र।।-1


दवा नहीं पाताल तक, लगी हुई है फौज।

कोरोना के कीट की, नहीं हो सकी खोज।।-2


दुवा भरोशे आदमी, दवा भरोशे वैद।

चीन भरोशे रोग यह, कोरोना में भेद।।-3


बाँध दिया था भीष्म ने, गंगा जी में बाँध।

इनके जैसा वीर ही, दे कोरोना काँध।।-4


रावण से बलवान है, यह कोरोना काल।

बजरंगी के देश में, फुला रहा है गाल।।-5


संजीवनी सुषेन की, दिखा रही है रंग।

धीरे धीरे ही सही, शिथिल कोरोना अंग।।-6



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