दो कुण्डलिया



माया शर्मा

ली राहत की साँस थी,सबने ही यह देख।

विपदा शायद टल गयी,करते थे उल्लेख।।

करते थे उल्लेख,सभी उबरे हैं इससे।

मन में था संतोष,मिले जो कहते उससे।।

लौटी देती मौत ,नहीं थी जिसकी चाहत।

टीका एक उपाय,सोच सबने ली राहत।।


खाँसी आयी देख कर,हुए सभी हैरान।

काढ़ा-भाप दिला रहे,मिश्रण का ले ज्ञान।।

मिश्रण का ले ज्ञान,कूटते जड़ियाँ खल में।

मधु में उसको डाल,चटाते तुलसी दल में।।

घर में रहना ठीक,नहीं समझें यह फाँसी।

संयम और बचाव,ठीक कर देगी खाँसी।।


**माया शर्मा,पंचदेवरी,गोपालगंज(बिहार)**

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