प्रेम बजाज
गिरा कर नफरतों की दीवार प्यार बांटते चलो, भूला कर रंग रूप का भेदभाव सबको एक सुत्र में बांधते चलो, मिटा दो भेदभाव जात-पात के, लहु का रंग सब का एक है, सब ही औलाद है उस ईश की, सबसे ईश का एक सा ही नाता है, यही इन्सानियत का पाठ एक - दूजे को पढ़ाते चलो, प्यार बांटते चलो।
ना जाने कब किस गली के मोड़ पर जीवन की शाम ढल जाए, बना लो किसी को अपना, दे दो किसी को सहारा, ले लो किसी की दुआएं। खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाना है, ये जग तो मानुष केवल कुछ पल का ठिकाना है, इसे ना अपना समझने की भूल करो,प्यार बांटते चलो।
मुसाफिर है सब इस सफ़र के, संसार मुसाफिर खाना है, मिले जो राह में मुसाफिर, हमें उसको अपना बनाना है, मन में ना रखो बैर-भाव, सबको अपना बना लो तुम, है वक्त बहुत मुश्किल अपनेपन के सहारे से इसे आसान बनाते चलो, सबसे प्रेम का रिश्ता निभाते चलो, प्यार बांटते चलो।
बैचेनी और ग़मों के बोझ तले सब दबे जा रहे, कुछ बैठ गए थक कर, कुछ रख हिम्मत चले जा रहे, नहीं रूकना, नहीं थकना हमें, मुश्किल राह से उबरना है, लगा कर कांटों को गले फूलों को चुनना है, कांटों में से फूलों उठाते चलो, प्यार बांटते चलो।