सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'
ललिन्सां इन्सानियत भूला, खुदा खुदाई भूल गया।
वक्त की मार है आदमी मिलन व जुदाई भूल गया।
जिस डाक्टर को हमेशा मानव ने रहीम माना,
उनमें भी कोई कलुषित जो फर्जअदाई भूल गया।
किसी को भी नहीं बक्क्षा है इस जुल्मी दावानल नें,
कुदरत के कहर से बच्चा तक भी रुलाई भूल गया।
बेरहमी व कालाबाजारी की दास्तान याद रही ,
हज, तीर्थ, इबादत, दर्शन इल्म व पढ़ाई भूल गया।
माता और पिता को मौत के आगोश नें लील लिया,
बच्चा माँ का प्यार और पिता की कमाई भूल गया।
ऐ चाईना तेरी बेरहमी के वहशी साए में,
आदमी घर में छिपा बैठा सारी भलाई भूल गया।
दाने-दाने को मोहताज है गरीब, बेकार यहाँ,
पेट की भूख याद कर दूध और दवाई भूल गया।
सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'
इन्दौर मध्यप्रदेश