प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'
जल से ही जीवन मिला, जल से बना शरीर।
जल संरक्षण से मिले, कल, परसों भी नीर।।१
यमुना का दम घुट रहा, सहती इतना पीर।
हृदयतल अपशिष्ट बहे, कितना धरती धीर।।२
सूख रही है नर्मदा, है चिन्तन गम्भीर।
झील,ताल सब मर गये, सूखा धरा शरीर।।३
बेमौसम बारिश हुआ, असमय होती धूप।
धरती की हरिता घटी, हुआ भयावह रूप।।४
नही तनिक बर्बाद हो, 'प्रबोधिनी' अब नीर।
मिलकर सभी जतन करो, हाल न हो गम्भीर।।५
प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश