कर्मफल



सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 

कर्म इन्सान का हो बस इन्सानियत पाने के लिए, 

बनाया खुदा ने उसको दिलों में बस जाने के लिए। 


बेबसी पर किसी की कभी तरस आया नहीं जिनको, 

बेबस हुए वे एक वक्त में गिड़गिड़ाने के लिए।


ठोकरों में अपनी जो रखते थे जमाने को, 

मजबूर हुए वे जमाने में लड़खड़ाने के लिए। 


गुलाम समझा जिसने दुनिया की हर शै को, 

विवश हुए वे दुनिया में हाथ फैलाने के लिए। 


समझते थे खुद को जो फरिश्ता नैतिकता का 'तरंग', 

मुॅह छिपाये गये वे दागदार दामन छिपाने के लिए। 


**सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 

११६, राजपुर मार्ग, 

देहरादून ।

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
गाई के गोवरे महादेव अंगना।लिपाई गजमोती आहो महादेव चौंका पुराई .....
Image
भोजपुरी के पहिल उपन्यासकार राम नाथ पांडे जी के पुण्य स्मृति में:--
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं यमुनानगर हरियाणा से कवियत्री सीमा कौशल
Image
पुस्तक समीक्षा : अब शैय्या-शेष की त्याग"
Image