इक ग़ज़ल

 अपनी सुत्रबंधन के अठारह वर्षों के सफ़र साथ पे



अंजु दास गीतांजलि

सफ़र में साथ तेरा साथी जन्मों तक निभाऊंगी ।

मैं दुल्हन तेरी बनके  साथी  तेरा घर सजाऊंगी ।

                           ❣️❣️


कभी  गुस्सा  कभी  तकरार  होगा  प्यार में लेकिन

थके।  हारे   जो आओगे  तुम्हे  सीने  लगाऊंगी।

                           ❣️❣️

तेरी होकर ही रहना चाहती हर जन्मों तक मैं भी ।

यकीं  कर  तेरे घर में रोज़ इक दीपक जलाऊंगी ।

                            ❣️❣️

सजाऊंगी  मैं   अपनी   मांग  तेरे नाम से हमदम ।

बड़े   आराम  से  बिस्तर  पे  सर  तेरा  दबाऊंगी ।

                             ❣️❣️

ख़ुदा  का  वास्ता तुमको कभी तुम छोड़ मत देना ।

तड़प  कर  जान  देदूंगी  तुम्हें   मैं  ना  भुलाऊंगी।

                              ❣️❣️

कहां  जाओगे बोलों भागकर के तुम जहां जाओ 

मेरी   आवाज़  तुमको  खींच  लेंगी जब बुलाऊंगी।

                               ❣️❣️

अंजु दास गीतांजलि पूर्णियां बिहार की क़लम से 🙏🌹🙏👈

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