लॉकडाउन और ऑनलाइन क्लासेज से परेशान बच्चे

 

पूनम शर्मा स्नेहिल

कोरोना और लाँकडाउन की वजह से बच्चे घर के भीतर रह रह कर के पूरी तरीके से परेशान हो चुके हैं । हालांँकि ऑनलाइन क्लासेस चलती हैं, पर फिर भी बच्चों से कहीं ना कहीं उनका बचपन छिनता जा रहा है । हर समय टीवी, मोबाइल और टैब की स्क्रीन के सामने ही बच्चों का समय व्यतीत हो रहा है । बच्चे होते चिड़चिड़े स्वभाव के होते जा रहे हैं। न दोस्तों से मिल पाना, ना बातें कर पाना , ना खेलना- कूदना बच्चों के भीतर बहुत ही ज्यादा गलत प्रभाव पढ़ रहा है । उनकी शारीरिक मानसिक दोनों ही दशा आहत हो रही है जहांँ बच्चों का अधिकतर समय दोस्तों के साथ खेलने कूदने और मस्ती में व्यतीत होता था । वहीं अब बच्चे घर के भीतर बंद-बंद परेशान होते जा रहे हैं।


 10 साल से ऊपर के बच्चे तो फिर भी इन बातों को समझ रहे हैं पर छोटे बच्चों के लिए इसे समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता जा रहा है। घर से बाहर न निकलना घर की चारदीवारी में महीनों बंद रहना आसान नहीं है इन नन्हे बच्चों के लिए , खेलने कूदने वाले बच्चों के लिए । उनकी सारी खुशियांँ ही मानों छिनती जा रही हों। स्कूल न जा पाना ,दोस्तों से ना मिल पाना , बातचीत ,शरारत ,दोस्तों के साथ टीफिन शेयर करना । बर्थडे सेलिब्रेशन ऐसी न जाने कितनी सारी चीजें हैं जो बच्चों को अंदर ही अंदर कचोट रहती हैं । वह चीजों को देखकर उन दिनों को और समय को याद करते हैं । इतने छोटे-छोटे बच्चों के ऊपर इस तरह का दबाव कभी किसी ने सोचा भी नहीं था।

 वह यह जानते हैं की कोरोनावायरस लोगों को नुकसान पहुंँचा रहा है। पर इसके बाद भी वह कभी-कभी बहुत ही परेशान हो जाते हैं । घर की चारदीवारी के भीतर खुद को बंद पाकर।


 मानो उड़ते परिंदे को किसी ने कैद कर दिया हो। उन्हें हर चीज पूरी की जा रही है पर उनकी आजादी छिन गई है मानो उनके पंखों को बांँधकर उनकी उड़ान बाधित किया जा रहा है।

इन मासूम कोमल मनोहर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ रहा है जिसे ना तो यह कहकर व्यक्त कर पाते हैं और ना ही समझ पाते हैं सिर्फ और सिर्फ जब चिड़चिड़ा हक अल्लाह हक से व्यक्त करते हैं जिसकी वजह इनको खुद भी पता नहीं होती है।


कृपया बच्चों के साथ सहानुभूति रखें हम और आप घर में रह रह कर के परेशान हो जाते हैं। लगातार एक ही रूटीन किसी को भी विचलित कर देता है । उनको और उनके कोमल मन को समझने का प्रयास करें ।आखिर वह जाएंँ तो जाएंँ कहांँ किस से अपनी बातें कहें हर किसी को अपनी बात कहने के लिए हम उम्र साथी की आवश्यकता होती है, हम कितना भी बच्चों के साथ खुल कर रहे फिर भी एक हम उम्र साथी की कमी पूरी नहीं कर सकते । यह बात हमें भी समझनी होगी ।


उनके ऊपर आवश्यक रूप से दबाव ना बनाएंँ।

उनके साथ वक्त बिताऐं । इन नन्हे पौधों का ख्याल इस मौसम की मार से हम सभी को मिलकर रखना होगा । हम बड़े इन परिस्थितियों में विचलित हो जा रहे हैं । फिर इन बच्चों को कैसा लगता होगा इसकी तो शायद कल्पना भी नहीं कर सकते हम लोग। दिनभर सिर्फ टीवी लैपटॉप मोबाइल कभी पढ़ाई कभी ट्यूशन तो कभी अदर एक्टिविटी और नहीं तो रिलैक्ज्स के लिए कार्टून और गेम भी मोबाइल पर ही सीमित होकर रह गए हैं। इससे निकलने वाले हानिकारक रेज कहीं ना कहीं बच्चों को शारीरिक और मानसिक क्षति पहुंँचा रहे हैं, परंतु हम विवश हैं हम चाह कर के भी बच्चों को इन चीजों से दूर अभी नहीं रख सकते हैं।


बच्चों के खान-पान और शारीरिक व्यायाम का विशेष है ध्यान रखना होगा। जिससे कि इनको होने वाली क्षति को हम कुछ हद तक कम कर सकें। बच्चों का कोमल मन इस समय बहुत सफर कर रहा है ना तो कुछ समझ पा रहे हैं ना कुछ कह पा रहे हैं।

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