कवि कमलाकर त्रिपाठी की रचनाएं

 


 शुद्धता 

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शुद्धता रखिए तन - मन की,

औ पर्यावरण को रखिए शुद्ध,

विजयी होंगे हर क्षेत्र में,

चाहे कैसा क्यों न हो युद्ध, 

चाहे कैसा क्यों न हो युद्ध,

है परमावश्यक अपनी शुद्धता,

कहते 'कमलाकर' हैं जीवनको,

स्वस्थ-निरोग रखती है शुद्धता।।

       

 स्वास्थ्य

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स्वास्थ्य से बढ़कर है सुख नहीं,

नित्यप्रति रखिए इसका ध्यान,

औ नियमित रहे जीवनचर्या,

शुद्ध - सात्विक करें खान-पान,

शुद्ध - सात्विक करें खान-पान,

अत्युत्तम रहेगा अपना स्वास्थ्य,

कहते 'कमलाकर' हैं कितना ही,

सुखप्रद होता हैअच्छा स्वास्थ्य।।

        

आस्था

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आस्था रखें परमात्मा में,

हैं वही सबके पालनहार,

संरक्षक हैं वही सचराचर के,

औ वही हैं हमारे खेवनहार,

वही हैं हमारे खेवनहार, 

हैं करते सारी वही व्यवस्था, 

कहते 'कमलाकर' हैं प्रभु में,

रखते हम भी पूरी आस्था।।


 छेड़छाड़

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छेड़छाड़ मत करो प्रकृति से,

प्रकृति को यों - ही रहने दो,

है प्रकृति हमारी जीवन साथी,

हमें प्रकृति के अंक में पलने दो,

हमें प्रकृति के अंक में पलने दो,

न करो प्रकृतिसे कोई खिलवाड़,

कहते 'कमलाकर' हैं कितनी,

अनिष्ट कर रही है छेड़छाड़।।

       

 प्रतिभागी

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प्रतिभागी बनें हर प्रतियोगिता में,

है ये उन्नति-विकास का संसाधन,

अनुभव-विचार का होगा विस्तार,

औ होगा मौलिक ज्ञानार्जन,

होगा मौलिक ज्ञानार्जन,

लक्ष्य-लाभ पायें होकर सहभागी,

कहते 'कमलाकर' हैं हर कोई,

हर प्रतियोगिता में हों प्रतिभागी।।    

 कवि कमलाकर त्रिपाठी.

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