बहुत याद आते हैं .....

    

     निर्मला जोशी'निर्मल'  

बहुत याद आते हैं वो दिन

जब हिल मिल सब साथ 

बैठा किया करते थे

हंसी के ठहाकों से

आँगन गुंजाया करते थे

एक दूजे के घर पर भी

कितना आया जाया रहते थे

घर के आंगन के जमघट में

किस्से कहानियों

चुट्कुले, पहेलियों 

की मस्ती उछल कूद करती थी

रिश्तों की अजब भरमार थी

मुहल्ले की सभी औरतें

भाभी,चाची मामी

बुआ ताई ,नानी,दादी के रिश्तों से

सजी संवरी रहती थीं

आंटी शब्द की  बयार तो

शायद कहीं अंधी गलियों में

भटकती  रहती थी  ।

साँझ होते ही सब उतर आते

उस वृंदावन से आंगन में

उस पर गूंजता खेलों का स्वर

ऊंच नीच का फाफड़ा

हम तुम्हारी ऊंच में

हम तुम्हारी नींच में

हरा समंदर गोपी चंदर

बोल मेरी मछली       

कितना पानी ?

इतना पानी,इतना पानी

एबी बेबी पोषम पा

पोषम पा भई पोषम पा

आइस पाईस , छुपम छुपाई

जाने क्या क्या इतिहास रचा था

उस छोटे से पर बड़े आंगन ने

संध्या होते ही घर ऊपर के 

मंदिर में सभी सहेलियों का

जमघट होता नित्य नियम से 

वो सुनहरे दिन क्या कभी

   फिर लौट के आएंगे ?

फिर से पहले की तरह क्या 

  हम  एक दूजे से मिल पाएंगे ??

        निर्मला जोशी'निर्मल'

            हलद्वानी,देवभूमि 

                 उत्तराखण्ड ।

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