ख़ुशियों की तलाश

 लघुकथा 

सवि शर्मा 

मुरारी दास खिड़की से बाहर झांकते उस बदल के टुकड़े को देख रहे थे । अकेला सा भटकता !किसका दोष है ये भटकन,नियति या स्यम की भूल ।

“अरे तुमने सुना नहीं मोहनी ,कितननी बार कहाँ है रात में चाहे बारह बजे भी आऊँ मुझे खाना गर्म ही दिया करो ।”

“जी मुझे बुख़ार था !”

ये सब बहाने बाज़ी है इतनी मेहनत कर गर्म रोटी भी ना मिले तो क्या फ़ायदा ,सारे दिन करती ही क्या हो तुम ?”

“तुम्हें पता नहीं इतना बड़ा बिज़नेस है देर तो होगी ।तुम तो यहाँ घर में आराम से हो , ज़रा जाकर देखो तो पता लगे कैसे काम होता है ।

आप थोड़ी देर रुको मैं गर्म कर लाती हूँ ।

अरे श्याम ,सोनू आ जाओ बच्चों खाना लग गया ।मोहनी ने मुरारी व बेटे श्याम ,सोनू को खाना खिलाया और चुपचाप आकार सो गई ।

मोहनी को बुरा लगता मुरारी तो उसके पति है लेकिन दोनो पुत्रों का व्यवहार भी उसके प्रति नकारात्मक ही है ।

          श्याम और सोनू दोनो को माँ की परवाह नहीं रहती ,नौकर के हाथ का बना खाना भी नहीं खाना ,जितनी भी तबियत ख़राब हो ,बनाना मोहनी को ही है ।बचपन से उन्होंने पिता का जो व्यवहार देखा ।उनको लगता माँ को हर हाल में अपने कार्य पूरे करने है ।

पिता के साथ बच्चे भी बिजनेस सम्भालते ।पापा की आँख के तारे थे दोनो बेटे ।मुरारी को अपने बेटों पर बहुत नाज था ।पत्नी को घर सम्भालने वाली से ज़्यादा कभी तवज्जो नहीं दी ।हाँ बेटे ज़ान से ज़्यादा प्यारे थे ।आख़िर उनके वंश को चलाने वाले थे ।

     उन्होंने कभी बच्चों को नहीं समझाया की माँ की भावनाओं का ख़याल भी रखना है ।उनका आदर करना है ।

दिन गुजरते गए और बच्चे पिता के रंग में रंगते रहे ।मुरारी बडे घरों की बेटियाँ दोनो बच्चों के लिए ले आए ।मुरारी व बेंटो का माँ के प्रति व्यवहार देख बहुओं ने भी वही अपना लिया ।वैसे भी दोनो बड़े घर की थी ।

       मोहनी जीवन में अत्याधिक परिश्रम व उचित देखभाल के अभाव में बीमार रहने लगी अब उसको साँस की बीमारी भी हो गई ।दोनो बहुओं को साथ रहना अखरने लगा ।दोनो को ही स्वतंत्रता चाहिए थी आधुनिकता का रंग असर दिखाने लगा था ।दोनो अपने पतियों को लेकर अलग हो गईं।

मोहनी बीमारी ज़्यादा दिन ना झेल पाई और दुनियाँ को अलविदा कह गई ।

           मुरारी के देखभाल करने वाले नौकर भी मनमानी करते ।बहु बेंटो ने अपना अलग घर बसा लिया था ।

आज उन्हें मोहिनी बहुत याद आ रही है उठे और उसकी तस्वीर के सामने जाकर खड़े हो गए “मोहनी मुझे माफ़ कर दो मै पति होने का फ़र्ज़ नहीं निभा पाया ,आज इस अकेलेपन ने मुझे तोड़ दिया है काश मै उस समय को वापिस ला सकता ,आज सबसे ज़्यादा मुझे तुम्हारी ज़रूरत है तब तुम मेरे पास नहीं हो ।पश्ताप में उनके आंसू भी देखने वाला कोई ना था ।

सवि शर्मा 

देहरादून

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