विमल सागर
छोड़ जिंदगी अपने हिस्से की
खुशियाँ तेरी आंचल भर दूँ
छोड़ जिंदगी के सपनों को
नेह लगा जीवन दे दूँ,
पिता गया कर त्याग हमारा
धरा आसमाँ बन जाऊँ
प्यार दुलार लुटाऊं बन धरणी
अम्बर सी चादर बन जाऊँ,
धरा करें सब सहन भार को
मैं भार पालन-पोषण सह लूँ
अम्बर ढ़कता घर बन चादर
सुख-दुख जीवन मैं हर लूँ,
मातृ दिवस छलके नयन नीर
मैं मात -पिता बन दिखला दूँ
पिता करे सब त्याग
मृगतृष्णा प्रेम सब विसरा दूँ,
मेरे हिस्से ममतामयी छाया
आंचल प्यार दुलार भरूँ
बेबस हूँ लाचार नहीं
माँ अनमोल प्यार बतला दूँ।।
विमल सागर
बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश