छन्दमुक्त कविता
महेन्द्र सिंह राज
प्रकति की गोद में मानव
प्रकति की गोद में दानव
प्रकृति की गोद में चन्दा
प्रकृति की गोद में तारे।
प्रकति की गोद में हैं वन
प्रकृति की गोद में उपवन
प्रकृति की गोद में नदियां
प्रकति की गोद में सारे।
प्रकति की गोद में सूरज
प्रकृति की गोद में धरती
प्रकृति की गोद में फसलें
प्रकति की गोद में परती।
प्रकति की गोद में जीना
प्रकति की गोद में मरना
प्रकृति की गोद में पर्वत
प्रकृति की गोद में झरना।
प्रकति की गोद में वायु
प्रकति की गोद में पानी
प्रकृति सबसे बड़ी दाता
प्रकति सबसे बड़ी दानी।
प्रकति की गोद में आत्मा
प्रकृति ही है परम आत्मा
प्रकति से ही है जीवन
प्रकति से ही है मरण।
प्रकति ही सृष्टि नियंता है
प्रकति से ही श्री कंता हैं
प्रकति की रक्षा सब करो
प्रकृति ही सृष्टि हन्ता है।
प्रकृति से अन्न मिलता है
प्रकति से मिलता है पानी
प्रकृति से वायु मिलती है
प्रकृति है सनातन पुरानी।
प्रकति से नहीं पुरा कोई
समस्त ब्रह्मांड की माताहै
यही सृष्टि पालक संहारक
यही पूर्ण सृष्टि विधाता है।
महेन्द्र सिंह राज
चन्दौली उ. प्र.