पूनम शर्मा स्नेहिल
बंद दरवाजे पर फिर आज ,
मुझे किसी ने दस्तक दी ।
रखूँ सबका मैं खयाल,
यही थी उसने आरजू की।
बाहर घूम रहा कोरोना ,
भीतर ही तुम रहना ।
थोड़ी बंदिश को इस पल,
पड़ेगा सब को सहना।
बंद दरवाजा रखना तुम ,
फिर नहीं किसी से डरना ।
रखुँगा तुम सब का ख्याल ,
चाहे पड़े किसी से लड़ना ।
हांँ मैं हूंँ एक बेजान दरवाजा,
पर रखता हूंँ कई जानों का ख्याल।
खड़ा-खड़ा मैं भी हो जाता,
हूंँ थोड़ा सा कभी-कभी बदहाल।
नहीं है इच्छा मुझे किसी को ,
अपना दर्द अब कहने की ।
आदत हो गई है अब तो,
मुझे यह आंँधी तूफान सहने की।
बंद दरवाजे पर फिर आज ,
मुझे किसी ने दस्तक दी।
रखूँ सबका मैं ख्याल ,
यही थी उसने आरजू की ।
रखूंँ सबका मैं ख्याल ,
यही थी उसने आरजू की ।।
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