ग़ज़ल

 


डाॕ शाहिदा

हर जगह सजदा किया उसकी तलाश में,

खाक सारी छान डाला उसकी तलाश में |


तारे गिन के रात बीती,गिनती रही अधूरी,

तेज़ धूप में तपता रहा उसकी तलाश में |


नदियों की मौजो में सागर की लहरों में,

बेताब सा यूँ तैरता रहा उसकी तलाश में |


गुलशन और सहरा मे,फूलों की खुश्बू में,

हम रच गयेऔ बस गये उसकी तलाश में |


तूफाँ बनकर सरहद पर भी अकसर हम,

पर्वत से टकरा गये हैं उसकी तलाश में |


इन तपती सड़कों पर कितनी बार चले हैं,

थकीथकी नज़रें अब हैं उसकी तलाश में |




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