पहला कदम रखा जब धरा पर माता पिता ने हाथों को थाम रखा था । बहुत सुकून से चलता ,खुश होता मैं नहीं गिरूंगा ।एक बार माता पिता पास ना थें , सोचा खुद ही खड़ा होता हूँ ।खड़ा हुआ हौसला बढ़ा,कदम बढ़ाया पर ये क्या ... धड़ाम से गिर गया ।माँ रसोई से दौड़ती आईं ..क्या हुआ ?
"कुछ नहीं " बोला और बैठा रहा ।माँ के जाने के बाद पुनः प्रयास किया और चार कदम के पश्चात खुद ही बैठ गया अब और नहीं चलूँगा कहीं गिर ना जाऊँ । माँ समझ गयी ,चलना चाहता है पर डरता है । हौसला दिया जो गलती पहले की अब मत करना ।मजबूत कदम से आगे बढ़ो नहीं गिरोगे ।
हिम्मत बढ़ी , कदमों की रफ्तार बढी । अनजान रास्तों को देखकर कई बार कदम ठिठके , ठोकर लगी तो माँ की सीख याद आई "गलतियाँ कम करना " । मौसम बदले , आबो-हवा बदली पर चलना जारी रहा , सीखना जारी रहा ।कभी धरा तो कभी आकाश को देखता ।"दिशाओं और दशाओं " में भटकता रहा , चलता रहा ।
आज एक पड़ाव पर पहुंच उन शीतल हवाओं को महसूस कर रहा हूँ जिसने मेरे पसीने को सुखाया । आंखे बंद कर सोचने लगा
सीखा बहुत ऐ जिंदगी, हर मोड़ ने सिखाया
है हर हार को "जीत" में बदलना ये समझाया ।
बस यूँ ही चलते रहना....💐✍️
स्वरचित
नीलिमा गुप्ता
स.अ.
प्रा.वि. खोदना खुर्द न 1
बिसरख , गौ .बु.नगर