देवकी दर्पण
संकट का छाया काल मन न धरो मलाल।
मानसिक स्वस्थ रहो, चुनौतियां झेल कर।
भाव वसुधैव कुटुम्ब का हिय धार प्यारे,
बनके मसीहा खुद कोरोना नकेल कर।
वेदना मिटाती समवेदनाएं सदा सदा
वीर आगे बढ़, पीछै नाकामी धकेल कर।
यह भी समय ही है, निकल ही जायेगा यूं।
दुरगम राह पर पैर धर गेल कर।।१।।
जिन्दगी इसी का नाम, दूसरो के आये काम।
दाम नहीं काम को महत्व देना चाहिए।
मन न ला गन्दगी ,बचाले उठ जिन्दगी
तू।
बन्दगी प्रभू की, यह नित लेना चाहिए।
हिय से बिसार शर्म,फर्ज को समझ धर्म,
नित कर निज कर्म,पंच सैना चाहिए।
दूखती किसी की मर्ज,फर्ज को समझ कर्ज,
तर्ज कंठ ले सरस ,न बहाने चाहिए।।२।।
रख मन मे उमंग रह गरीबो के संग,
जंग कितनी भी बड़ी हो तू जीत जायेगा।
नाम है उसी का जीना गोद ली अनाथ मीना,
गर्व से फुला तू सीना,दर्द बीत जायेगा।
आंसू पूछ निज हाथ,चाहे मिले नही साथ,
चल करता सनाथ,दुख रीत जायेगा।
अभावों में भाव कर, दुखियों के घाव भर,
ऐसी पांव डग भर,युग गीत गायेगा।।३।।
जन्म ले धरा पे आना, जीने के लिए ही खाना,
गाना गीत देश के जीना इसी का नाम है।
सिंह सी रहे गलार,और शुद्ध हो विचार,
संसकृति वेश के, जीना उसी का नाम है।
पड़ोसी को देख सुखी,मन होता नहीं दुखी
हो वकील केस के ,जीना उसी का नाम है।
मन से महात्मा हो, राममय आत्मा हो,
भक्त हो महेश के, जीना उसी का नाम है।।४।।
🌷देवकी दर्पण🌷✍️
काव्य कुंज रोटेदा
जि.बून्दी राजस्थान