सिर्फ इंसानियत ही जात है मेरी
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई नहीं हूं मैं,
सिर्फ इंसानियत ही जात है मेरी ||
जो जलते हैं मुझसे जलने दो उन्हें,
धुआ धुआ ना कर दूं उन्हें तब तो बात है मेरी ||
खिलाफ हो जाए जुर्म ढाले जितना चाहे जमाना,
तबाही मचाने वाली आंखों में बरसात है मेरी ||
सब कुछ छीन ले ये जहान मुझसे फिक्र नहीं मुझे,
उसकी मोहब्बत पर हक है मेरा वही जायदाद है मेरी ||
सिर्फ जिस्म ही जुदा कर पाए उससे मेरा ये जहान वाले,
रूह तो आज भी उसके साथ है मेरी ||
मेरी मोहब्बत पर उंगलियां सोचकर उठाना,
जिस दिन आए अखाड़े में बता दूंगा क्या औकात है तेरी||
ऐसे ही नहीं बना शायर ये #सागर,
दर्द और गमों के सांचे में ढली रात है मेरी ||
पतंग-
दिल में भरे उड़ान के कई रंग थी वो,
आसमान में उड़ने की नई नई उमंग थी वो ||
कच्ची डोर थी उसकी मगर,
उड़ने में मस्त मलंग थी वो,
डर नहीं था उसे किसी का,
क्योंकि उड़ी अपनों के ही संग थी वो ||
आजाद उड़ी जब आसमान में,
चेहरे पर खुशी की उसके नई तरंग थी वो ||
मासूम थी वो इतनी उसे ना पता था,
कि अपनों के ही साथ जंग थी वो ||
उड़ने लगी जब आसमान में तो सोचा ना था,
कि अपनों से ही तंग थी वो ||
जब गिराने लगे अपने ही आसमान से उसे,
यह देखकर सबसे दंग थी वो ||
आखिर गिरा ही दिया अपनों ने उसे,
अपनों के ही धागों से कटी वो पतंग थी वो ||
लड़खड़ाते हुए जब वो गिरी आसमान से,
ना जाने किस-किस ने लूटी पतंग थी वो ||
-वीरेंद्र सागर
-शिवपुरी मध्य प्रदेश