कवि वीरेन्द्र सागर की रचनाएं

सिर्फ इंसानियत ही जात है मेरी 

हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई नहीं हूं मैं,

सिर्फ इंसानियत ही जात है मेरी || 

जो जलते हैं मुझसे जलने दो उन्हें, 

धुआ धुआ ना कर दूं उन्हें तब तो बात है मेरी ||

खिलाफ हो जाए जुर्म ढाले जितना चाहे जमाना, 

तबाही मचाने वाली आंखों में बरसात है मेरी ||

सब कुछ छीन ले ये जहान मुझसे फिक्र नहीं मुझे, 

उसकी मोहब्बत पर हक है मेरा वही जायदाद है मेरी ||

सिर्फ जिस्म ही जुदा कर पाए उससे मेरा ये जहान वाले, 

रूह तो आज भी उसके साथ है मेरी ||

मेरी मोहब्बत पर उंगलियां सोचकर उठाना, 

जिस दिन आए अखाड़े में बता दूंगा क्या औकात है तेरी||

ऐसे ही नहीं बना शायर ये #सागर, 

दर्द और गमों के सांचे में ढली रात है मेरी ||


पतंग-


दिल में भरे उड़ान के कई रंग थी वो, 

आसमान में उड़ने की नई नई उमंग थी वो ||


कच्ची डोर थी उसकी मगर, 

उड़ने में मस्त मलंग थी वो, 


डर नहीं था उसे किसी का, 

क्योंकि उड़ी अपनों के ही संग थी वो || 


आजाद उड़ी जब आसमान में, 

चेहरे पर खुशी की उसके नई तरंग थी वो || 


मासूम थी वो इतनी उसे ना पता था, 

कि अपनों के ही साथ जंग थी वो ||


उड़ने लगी जब आसमान में तो सोचा ना था, 

कि अपनों से ही तंग थी वो ||


जब गिराने लगे अपने ही आसमान से उसे, 

यह देखकर सबसे दंग थी वो ||


आखिर गिरा ही दिया अपनों ने उसे, 

अपनों के ही धागों से कटी वो पतंग थी वो || 


लड़खड़ाते हुए जब वो गिरी आसमान से, 

ना जाने किस-किस ने लूटी पतंग थी वो || 


-वीरेंद्र सागर 

-शिवपुरी मध्य प्रदेश

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