क्या लिखूं? मां आपके लिए,
मैं आपकी ही लिखावट हूं।
क्या बनाऊं बातें बड़ी -बड़ी,
मैं आपकी बनावट हूं।
अस्तित्व दिया आपने,
संस्कार से पाला मां।
हर स्थिति में धैर्य धरूं,
ऐसे परिवेश में ढाला मां।
क्या अनकूं मैं इधर-उधर?
मैं आपकी ही आहट हूं।
दु:ख हो या सुख हो,
सबसे मुझे निकाला मां।
लगे न किसी की बुरी नज़र,
आंचल में मुझे सम्हाला मां।
क्या देखूं सुन्दरता मैं इधर-उधर?
मैं आपकी ही सजावट हूं।
मेरी जीवन बगिया महक रही,
आशीष आपका मिला मुझे।
आगे-आगे मैं बढ़ निकली,
सम्मान असीमित मिला मुझे।
अभिव्यक्ति कहां तक करूं मैं मां,
मैं आपकी सुगबुगाहट हूं।
आपसे ही जीवन सुरभित है,
मैं आपकी ही सुन्दर चाहत हूं।
अनुपम चतुर्वेदी
सन्त कबीर नगर ,उ०प्र०