नारी


माया शर्मा

दो-दो कुल का मान,बढ़ाती है नारी।

संस्कार का पाठ,पढ़ाती है नारी।।1।।


सम्बन्धों की डोर,सहज पकड़े चलती,

दिखे कहीं भी गाँठ,छुड़ाती है नारी।।2।।


सुख-दुख में वह साथ,निभाती आजीवन,

दुर्गम मग आसान,बनाती है नारी।।3।।


रहे कुशल परिवार,यत्न उसका होता,

जो भी बने उपाय,कराती है नारी।।4।।


वह तो कुसुम सदृश,सदा महका करती ,

मौसम सदाबहार,बनाती है नारी।।5।।


सब कुछ है आसान,नहीं दुष्कर समझे,

श्रम से कर उत्थान,दिखाती है नारी।।6।।


त्यागमयी वह मू्र्ति,लुटाती शुचि ममता,

सदा गुणों की खान,कहाती है नारी।।7।।


**माया शर्मा

पंचदेवरी,गोपालगंज(बिहार)**

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