डॉ पंकजवासिनी
विधाता तुमने छोड़ दिया है धरा पर जन्म देकर!
माँ ही है जो जन्म देती है पालन भी करती है!!
तुमसे बढ़कर प्रभु! नवजीवन की रचना करती है!!
बन प्रथम शिक्षिका सुत को सतत् संस्कारित करती है!!
रह-रह बलिहारी हो मुख-गात चुंबन से भरती है!
बच्चों के हित में निज सुख मांँ न्योछावर करती है!!
कर कोटि जतन मांँ जीवन उपवन को सुरभित करती है!
दुख की गागर करके रीती सुखों से भर देती है!!
भवन को अपनी ममता से घर अलंकरण देती है!
अपनी ममता की छांँव में स्वर्ग सुख भर देती है!!
निज आँचल से निस्सीम नभ को छोटा कर देती है!
रख दे जहांँ निज चरण! माँ तीर्थ का सृजन करती है!!
मांँ की छत्रछाया दिव्य कल्प वृक्ष का सृजन करती है!
माँ नित नित कर कल्याण भू पर प्रभु मूरत गढ़ती है!!
*डॉ पंकजवासिनी*
असिस्टेंट प्रोफेसर
भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय