मत्युदान

 



या मालिक मुझे मृत्युदान दे।


पेट की आग सही ना जाए

बच्चे रो-रो कर शोर मचाए

बाहर है प्रलय प्रचण्ड वेग पर

तूने क्यों ऐसा ज़ुल्म किया रे?

मौत से ज्यादा कष्ट सताए

रह-रह कर जीवन तड़पाए

दम घुटते रहते हैं हरदम

श्वास जिस्म ये छोड़ ना पाए

आने वाला है समय भयंकर

सोच-सोच कर मन घबराए

कहीं अधम ना मैं बनजाऊँ

ऐसे कुकृत्य से मुझे बचा दे

या मालिक मुझे मृत्युदान दे।


इस आफत का है रूप भयंकर

सब पर समदृष्टि, ना कोई अभयंकर

मगर यहाँ भी फ़र्क़ है दिखता

धनी है ऐश से, निर्धन रोता

सूनी सड़क, वीरान हैं गलियाँ

श्मशान बनें हैं शहर-बस्तियाँ

हवा में छाया है ख़ौफ़ ज़हर का

घर के अंदर है पहरा मौत का

भूख ना त्यागूँ तो मर जाऊँ

भूख जो त्यागूँ तो मर जाऊँ

कहीं भूख कपटी ना बना दे

उठा सुदर्शन शीश माँग दे

या मालिक मुझे मृत्युदान दे।


या मालिक मुझे मृत्युदान दे

मृत्यु दान या अभयदान दे

या जीवन को स्वाभिमान दे

या मालिक मुझे मृत्युदान दे।


- आर. आर. झा (रंजन)

बड़ीबन-सहसोल, सहरसा-852129 (बिहार)

rrjha.ranjan@gmail.com

98 99 415 201, 89 208 10 672

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