हाइकु(एक प्रयास)
"पुष्प"
पुष्प की चाह
प्रेम को है दर्शना
गले लगाना
कोमलता है
मेरी पहचान भी
एहसास भी
प्रेम की बेदी
पर चढ़ मुस्काऊ
तुम्हें बुलाऊँ
लाल गुलाब
प्रेम अभिवादन
का स्वरूप है
पंखुड़ियों में
सुगंघ है मेरी ही
इसको फैला
चाहत मेरी
प्यार की भाषा बनूँ
इठलाऊँ भी
चाहो तो सजा
बालों में गूँथ लेना
इतराना भी
ये कैसी मजबूरी
ये कैसी मजबूरी है,भरी दुनिया मे भी क्यों लोगों में दूरी है?
ये कैसी मजबूरी है तरक्की के लिये शव पर भी खड़े होने की होंडा- होड़ी है।
ये कैसी मजबूरी है जिस माँ के स्तन से पान किया,
उसे वृद्धाश्रम पहुँचाते हैं,
बिन माँ-बाप के ही आज हर परिवार बहुत खुश नजर आते हैं।
ये कैसी है मजबूरी अपनो से अब पराये )अधिक भाते है।
आज की संस्कृति से ओत-प्रोत बच्चे बिन माँ-बाप के दोस्तों के साथ ब्याह रचाते है।
ये कैसी है मजबूरी किसान भूखे मर जाते है,
उनकी उगाई अनाज पर अमीर जश्न मनाते हैं।
गरीब के बच्चे सूखी रोटी को तरस जाते है,
वही अमीरों के
कुत्ते-बिल्ली हलवा-पूरी खाते है।
ये कैसी मजबूरी है नेता देश चलाते है,
जिनके वोटों पर जीतते है उन्ही का गला दबाते है।
पाँच दिन जोर-जोर से चिल्लाते है,
जीत के बाद पाँच साल कही गुम हो जाते है।
ये कैसी मजबूरी है अर्थ सब पर भारी है,
अर्थ-लोभ ही सबसे बड़ी महामारी है।
धोखेबाजों के घर अर्थ विराजता है,
पढ़े-लिखें लोगों के घर में बेकारी है।
मीना माईकेल सिंह
कोलकाता