डॉ अलका अरोड़ा
मुहब्बत की बैखौफ मस्ती जिन्दा रखती है
जुदाई की तपिश से ये बरसात बरसती है
क्यू इन्कार करके मुड मुड देखता जानम
ये अदा तो जालिम हमें बरबाद करती है
इश्क हुआ तो एसा हुआ की मत पूछिए
हंसना रोना साथ हुआ बस जान लिजिए
जागकर कटी रैना हुई अश्रुजल से धरा भारी
अरे बाते रसभरी न सही पर कुछ तो कहिए
चेहरे की पुरनूर चमक मेरे होश उडाती है
विष का सागर क्या तू अमृत सुखा देती है
रूठ कर जब जब तू मुझसे दूर जाता है
अदा तेरी यही यारा मुझे पागल बनाती है।
कहीं शब्द खेलते मुझसे कहीं मन को दुखाते
कहीं मुस्कान लेकर के दिल को बहलाते
कहींतो रास्ता मुश्किल कहीं मंजिल नदारद है
सफर कैसा भी हो हमदम मिल के काटेगें
गुजारिश कररहे तुमसे इश्क की राह पे आओ
खुश्बू लेके साँसो में बगिया फिर से महकाओ
रस्ता प्यार का थोडा सा खट्टा मीठा होता है
मिटाकर दूरियाँ सारी मेरे नजदीक आ जाओ
वफा में जान देना ही तो रब की इबादत है
इश्क के गहरे पानी सा एक खामोश दरिया है
बात उल्फत की होती तो आँखे भीग जाती हैं
तेरी धंडकन का सूनापन मेरी हकीकत है
डॉ अलका अरोड़ा
प्रो० देहरादून